Sunday, September 1, 2013

नेशनल पार्क - ओरछा

प्राकृतिक पथ

विश्व में पर्यटन का विशेष महत्व है । प्रकृति किसका मन नहीं मोह लेती है । मनुष्य विश्व के किसी भी कोने में रहता हो परन्तु प्रकृति किसी न किसी रूप में उसका मन मोह ही लेती है । आज तक जितने भी मनीषी बुद्धिजीवीवैज्ञानिक दार्शनिक तथा समाज सुधारक हुए है वे सभी भ्रमणशील प्रकृति प्रेमी रहे है ।
पर्यटन भारतीय परम्परा का अभिन्न अंग रहा है । वैदिक युग से आज तक पर्यटन का महत्व बराबर बना हुआ है । प्राचीन काल में मनुष्यों का आधा जीवन वन में व्यतीत होता था । वानप्रस्थ से सन्यास तक का ज़्यादा समय वन में व्यतीत होता था । भगवान राजा रामजीमाता सीता व भाई लक्ष्मण ने भी अपने जीवन के चौदह वर्ष वन में व्यतीत किये थे और उनमें से बारह वर्ष चित्रकूट व बुन्देलखण्ड के अरण्य अंचल में ही बिताए थे ।

भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही यह परम्परा रही है कि जब भी कोई राजा के दुर्दिन आये तो वह वनों में जाकर समय बिताते । वह एकान्त में जीवन बिताकर अपने अच्छे-बुरे कार्यों का बोध कर जीवन को सार्थक बनाते थे ।

प्रकृति का सान्निध्य मनुष्य को दीर्घ आयुकरुणामयत्यागमयसहनशील एवं परोपकारी बनाता है । नियमबद्धता प्रकृति में सदैव देखने को मिलती है । देवगन्दर्भकिन्नरस्वर्ग की अप्सराएँविदेशी व देशी - प्रकृति सभी का मन मोह लेती है ।

ओरछा का तुंगारण्य भी उन्हीं में से एक है । यहाँ की प्राकृतिक सौन्दर्यता से मंत्र मुग्ध होकर ऋषि तुंग ने अपनी तपो भूमि बनाई थी । नदी किनारे जहाँ पर घुरारी जामुनी और बेतवा नदियों का संगम होता हैउसी के किनारे से करीब १५ फ़ीट ऊँची और ८x८ फ़ीट की लम्बाई व चौड़ाई की मचान बनाकर ऋषि तुंग तप किया करते थे । वह मचान आज भी बनी हुई है | जिसके एक ओर से विशाल चट्टानों के पहाड़ की चोटी मचान तक जाती है और तीनों ओर से नदियों के चोंडे पाट तीन दिशाओं से आते स्पष्ट दिखलाई देते है । यहाँ तीनों नदियों का संगम होने के कारण वर्षा ऋतु में यहाँ नदियाँ मिलकर विशाल रूप धारण कर लेती है । यहाँ आने के लिए रास्ता बहुत उबड़-खाबड़ पगडंडी वाला है । यहाँ ऋषि तुंग की तपों भूमि होने के कारण इस वन का नाम ही तुंगारण्य रख दिया गया इसलिए ओरछा मंदिर में भगवान राम राजाजी की शाम की आरती में प्रतिदिन स्तवन के रूप में गाया जाता है

तुंगारण्य प्रसिद्ध हैनीर भरे भरपूर ।
वेत्रवती गंगा बहेपातक हरत ज़रूर ।।

तुंगारण्य और वेत्रवती नदी का महत्व इतना है कि यह दोनों पवित्र स्थल भगवान राम राजाजी की दैनिक आरती का अंग हैतुंगारण्य का नैसर्गिक सौन्दर्य बेतवा के सुन्दर एवं मनोरम घाट तथा अनूठी छटा के लिए आज भी देशी विदेशी यहाँ आकर इसे निहारकर विमुग्ध होते है । यहाँ पर अभी भी ऋषि तुंग की तपस्या का अनुभव किया जा सकता है । इसलिए नदी के उस पार के सघन वन को तुंगारण्य में सम्मिलित करते हुए पवित्र बेतवा और जामुनी नदियों के बीच स्थित छोटे से द्वीप को सन १९९४ में ओरछा अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया | बेतवा नदी पुल को पार करने पर अभयारण्य बेतवा एवं जामुनी नदियों के मध्य रमणीक वनाच्छादित क्षेत्र को दोनों नदियों इस अभयारण्य की चातुर्दिक सीमा बनाती है । अभयारण्य का भौगोलिक क्षेत्र फल ४४.९० वर्ग किलो मीटर है । ओरछा अभयारण्य टीकमगढ वन मण्डल के उत्तर में स्थित है |

तुंगारण्य की प्राचीनतापावनतातपस्थलीता और रमणीयता के कारण अभयारण्य प्रबंधक ने इस स्थल को वर्तमान में विशिष्ट रूप प्रदान किया हैएवम् भविष्य के लिए भी पर्यटकोंश्रद्धालुओंशोधार्थियोंपर्यावरणविदों एवं प्रकृति प्रेमियों के लिए विकास की नींव डाली है । तुंगारण्य में प्रवेश करने के पहले मेन-गेट पर ही टिकट घर बना हुआ है । वहाँ से पूरे अभयारण्य को घूमने के लिए टिकट लेना पड़ता है । टू-व्हीलर से घूमने के लिए २५०/- रू० ओर फोर-व्हीलर से घूमने के ४००/- रू० चार्ज किये जाते हैऔर केवल तुंगारण्य को भ्रमण करने के लिए भारतीय पर्यटकों से १५/- रू० का टिकट एवं विदेशी पर्यटकों से १५०/- रू० का टिकट निर्धारित किया गया है । जिसमें पर्यटक तुंगारण्य के प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ बेतवा नदी के किनारे १.५ कि०मी० पैदल पथ पर घूमकर नज़ारे देखे सकते है ।

तुंगारण्य

तुंगारण्य में भ्रमण करके प्राकृतिक सौन्दर्यता और बेतवा की जलधाराओं का लुत्फ उठाने के लिए १.५ कि.मी लम्बे पैदल पथ (ट्रेक) का विकास किया गया है । तुंगारण्य में जिस स्थान से पैदल चलना शुरू किया जाता हैवहाँ से ०.५ कि.मी. की दूरी तय कर पर्यटक गंतव्य स्थल से ठीक प्रस्थान बिन्दु पर वापस आ जाता है । प्रस्थान बिन्दु से जब हम चलते है तो सर्वप्रथम पड़ाव बच्चों के खेलने के लिए चिल्ड्रन गार्डन और सैलानियों व पर्यटकों पिकनिक के लिए लाँन बने हैवेत्रवती के किनारे प्राचीन अर्जुन के वृक्षों में से एक वृक्ष की जड़ों में गणेश की मूर्ति स्पष्ट दर्शनीय है । कनैर के मदहोश करने वाले फूलों की सुगंध और कटजामुन की सुन्दरता निहारते हुए सैलानी पैदल चलता जाता है तो उसे सामने एक मौसमी झरना दिखलाई देता है । इस ज़ूमडिया के छोटे झरने को पास से देखकर दर्शक कुछ पल के लिए रुक कर पानी का आनन्द लेता है | यह झरना तुंगारण्य की सौन्दर्यता में चार-चाँद लगा देता है । झरने की ध्वनि व धवल धारायें हम जून से अक्टूबर यानी बारिश के मौसम में देख सकते हैं । झरने से कुछ दूरी पर एक मज़ार भी है | 

नदी के किनारे पैदल चलते हुए दक्षिण दिशा से तट छोड़कर धुवाई नाले से मुड़कर चैन-लिंक फेंसिंग के सहारे तथा ओरछा- पृथ्वीपुर पी०डब्ल्यू०डी० रोड के समानांतर चलते हुए पर्यटक तुंगारण्य के प्रस्थान बिन्दु और मुख्य प्रवेश द्वार पर वापस पहुँच जाता है । प्रवेश के दूसरी ओर सामने ही तीन कमरे बने हैपास में ही कछुआ प्रजनन व पालन के लिए एक वन विभाग द्वारा तालाब बनाया गया है । नीचे की तरफ़ पत्थर की जगह-जगह बेंचें व कचड़ा डालने के लिए डस्टबिन रखे हुए है । आगे चलकर ढलान दार व साफ सुतरा नदी का घाट बना है यह स्थल ‘व्यू पांईट’ से जाना जाता हैयहीं से पर्यटक राफ़्टिंग का मज़ा भी लेते है और विभिन्न प्रकार पक्षी व गिद्धों को भी देख सकते है । यहाँ से नदी के उस पार किनारे पर स्थित ओरछा रियासतों के राजाओं की समाधियाँ (छतरियाँ) कंचनाघाटओरछा रिसोर्टराजमहल जहाँगीर महलबेतवा कॉटेज व चतुर्भुज मंदिर के अद्भुत नज़ारे जब पर्यटक अपनी नज़रों से देखता हे और कल-कलछल-छल निनाद करती बेतवा की ध्वनि को सुनकर वह एक अविस्मरणीय अनुभूति जघन्य आनन्द का अनुभव करता है । ‘व्यु पांईट’ से नदी के किनारे-किनारे पुल की ओर बढ़ेंगे तो वहाँ अर्जुन का विशाल वृक्ष दिखलाई देता है । उसी के नीचे विश्व विख्यात हीरोइन कतरिना कैफ ने भी शूटिंग की थी |

तुंगारण्य में पाई जाने वाली वनस्पति

तुंगारण्य में अधिकांशतः करधई व सागौन के वृक्ष पाये जाते है । इसके अलावा फ्लाशरिझमाअर्जुन (कहवा)कटजामुनक़दम्बबेलतेंदुमहुआख़ैर व अन्य प्रजातियाँ पाई जाती है | सौंदर्यवान पौधों में कनैरबोगनविलियाकरौदामधुमालती की बेले व अन्य प्रजातियाँ पाई जाती है | वनौषधियों वाले वृक्षों में आंवलाअद्दाझाराभ्रंगराज (घमरा) शंखपुष्पीपथरचटाकचरियाँ व अन्य प्रजातियाँ | यहाँ पर कई प्रकार की घासें भी पाई जाती है जैसे-बरूदूबफूलबहारीरूसाखस व अन्य प्रजातियाँखरपतवार में गाजर घासचकोडा (गुल चकार) वेशरम व अन्य प्रजातियाँ पाई जाती है ।

तुंगारण्य के प्रस्तावित कार्य

१.      व्याख्या केन्द्र
२.      फ़िल्म प्रदर्शन
३.      ट्री हाउस
४.      नौकायन   
५.      पक्षी दर्शन  
६.      रोप वे    
७.      कृत्रिम कछुआ पालन केन्द्र   
८.      साईकिलंग
९.      मछली पालन 
१०.  पर्वत रोहण
११.  प्राकृतिक एक्वेरियम
१२.  टेंट हाउस
१३.  प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम
१४.  राफ़्टिंग

भोर बाग़

यह स्थल ओरछा अभयारण्य के मुख्य द्वार के किनारे -किनारे से पगडंडी का रास्ता बना हुआ है । क़रीब एक कि.मी. पैदल चलने पर हमें कुछ मंडियाँ एवं वाग बग़ीचा दिखलाई देते है । बग़ीचा में  फलो के वृक्ष एवम् फूलो की कई तरह की क्यारियां बनी हुई है । और एक पानी पीने के लिए कुआँ भी है । यह स्थल महाराजा वीरसिंह ज़ू देव ने स्थापित करवाया था। कहते है कि महाराजा जी प्रतिदिन प्रातः महल से यहां तक घूमने को आया करते थे । इसीलिए वुन्देली भाषा में इस जगह को भोर बाग़ नाम से जाना जाता है ।

हनुमान गढ़ी

यह स्थल भोर बाग़ से आगे जंगल की तरफ़ क़रीब आधा कि.मी. दूरी पर स्थित है । यहाँ पर विशाल पत्थर की शिला पर विराट श्री हनुमान जी की प्रतिमा उत्कीर्ण है । प्रतिमा अत्यन्त प्राचीन एवम् आकर्षक है यहाँ आकर भक्त श्री हनुमान जी के दर्शन के खुली हवा में थोड़ी देर विश्राम करके शांति का अनुभव करता है । हनुमान जी की प्रतिमा उत्कीर्ण है । प्रतिमा अत्यन्त प्राचीन एवम् आकर्षक है यहाँ आकर भक्त श्री हनुमान जी के दर्शन करके शांति का अनुभव करता है । और चारों ओर विशाल वृक्षों की खुली हवा में थोड़ी देर विश्राम करके खाना व प्रसाद ग्रहण करते हुए प्राकृतिक सौन्दर्यता में रम जाता है क्योंकि श्री हनुमान गढ़ी के चारों ओर करधईसागौनमऊआकटजामुनपीपलअर्जुन आदि अन्य बड़े-बड़े वृक्ष लगे है । वृक्षों पर लाल मुँह के बन्दर अपने बच्चों के साथ एक डाल से दूसरी डाल पर अठखेलियाँ करते हुए अत्यन्त लुभावने लगते हैं । भक्त व पर्यटकों के आने पर बन्दर की सेना एक डाल से दूसरी डाल पर उचकने लगती है । ये बन्दरक्या सामान आपके पास है ध्यान से देखते हैं । अगर आप केलाचना व अन्य खाने का कोई भी सामान बंदरों को देंतो वे बड़े चाव से खाते हैं । अगर आपके पास कुछ भी सामान है और उन्हें कुछ भी नहीं देना चाहतेतो सावधान रहियेगामौका पाते ही वे एक साथ मिलकर धावा बोल सकते हैं । आपका सामान छीनकर उसमें से अपने खाने का सामान निकाल कर बैग या चश्मा जो भी होतोड़-ताड़ करमन हो तो आपके पास फेंक जायेंगे नहीं तो जंगल में कही भी फेंक सकते हैंऔर अपने बच्चों को पीठ पर बिठाकर एक डाल से दूसरी डाल पर झूलते रहते हैं । बुंदेलखंड में बन्दरों को भगवान हनुमान जी की सेना कहते हैं । मंगलवार व शनिवार को ओरछा और आसपास के भक्त यहाँ दर्शन करने आते हैं ।

बेतवा एवम् जामुनी का संगम

यह स्थल हनुमान गढ़ी से क़रीब एक कि.मी. एवं तुंगारण्य मुख्य द्वार से तीन कि.मी. की दूरी पर स्थित है । यहाँ पर जामुनी और बेतवा नदी मिलकर ओरछा अभयारण्य की चातुर्दिक सीमा बनाती है । यहाँ पर दोनों नदियों की धारायें आपस में मिलती हैं । इसलिए यहाँ पर नदी का पाट अत्यधिक चौड़ा हो जाता है । नदी की कल-कल ध्वनि पर्यटकों को दूर से ही आकर्षित करती है । नदी की धवल धाराओं में मछलियों की कई प्रजातियाँ आसानी से देखी जा सकती है। यहाँ पर मछलियों की सोलह प्रजातियाँ पाई जाती जिसमें सबसे दुर्लभ महाशीर की मछली यही पाई गई हैइसलिए इसे मध्य प्रदेश की ‘राज्य मछली’ घोषित कर दिया गया है । ये दोनों नदियाँ पत्थरिली है इसलिए नदी के बीच-बीच में ऊँची-नीची विशाल चट्टानें हैऔर कई चट्टानों पर बड़े वृक्ष अत्यन्त सुहावने लगते हैजहाँ भी चट्टानों के बीच में गड्ढा हो जाता है तो पानी रुक जाता है । वहाँ जलीय घास उग आती है । किनारों पर भी जहाँ पानी रुकता वही नई तरह की घास उग आती है इसलिए यहाँ कम से कम आठ प्रकार की जलीय घासलताएँ व बेले दिखलाई देती है । नदी के सामने से ओरछा के मन्दिर स्पष्ट दिखाई देते है । शाम के समय के जब सूर्य अस्त होता है तब सूर्य की लालिमा मंदिरों के शिखरों से उतर कर नदी के संगम जल में डुबकी लगाती हुई परिलक्षित होती है । यह दृश्य प्राकृतिक सौन्दर्यता में "चार-चाँद” लगा देता है । पावन पर्व मकर संक्रान्ति पर आसपास के गाँवों के लोग संगम में स्नान कर पूजा अर्चना करते है । और अपने आपको पापों से मुक्त करते है।

हाथी रॅाक

यह स्थल संगम के पास करधई की लकड़ी के जंगल के बीच में एक प्राकृतिक शिला स्थित है । इस शिला की आकृति हाथीनुमा है पत्थर का रंग भी साँवला है । बारिश में जब दोनों नदियों में बाढ़ आ जाती है तब नदियाँ का पानी शिला तक आ जाता है इसलिए शिला के चारों ओर लम्बी-लम्बी घासदूर्वाफूल व हारी रूसा अन्य बहुत तरह की घासें उग आती है । कही हरी कही सूखी पीली घासों के बीच में खड़ी शिला दूर से ऐसे प्रतीत होती है जैसे हाथी घास चर रहा होपास में आने पर शिला की आकृति समझ में आती है । इसलिए इस शिला को हाथी रॉक कहते हैये प्रकृति का अद्भुत नज़ारा है ।

लंका की दीवाल

आप नदी के संगम व हाथी रॅाक देखकर वापिस तुंगारण्य की ओर वापिस आते है । तो आधा कि.मी. अन्दर जंगल के पगडंडी वाले रास्ते में अर्जुन के बड़े-बड़े वृक्षकनैर के फूलो की मदहोश करने वाली सुगन्ध और कट जामुन की सुन्दरता निहारते हुए सैलानियों को एक दीवाल दिखलाई देती है । इसी को लंका की दीवाल कहते है । कहते है राजा महाराजाओं के समय में जब भगवान रामचन्द्रजी की राम लीला होती थी । तब रावण की लंका इसी दीवाल के सहारे बनाई जाती थी । गाँवों के लोग यहाँ तब राम रावण के युद्ध का आनन्द उठाने आया करते थे । आज इस दीवाल से ओरछा राज्य की सीमा निर्धारित की जाती थी । यह दीवाल महाराजाओं द्वारा निर्मित कराई गई है । यहाँ पर गिद्धों का स्थाई निवास स्थान है । पेड़ों पर गिद्ध प्रायः देखने को मिल जाते है । गरमी के मौसम में गिद्ध इन्हीं पेड़ों पर अपने बच्चों को जन्म देते हैं ।

खिन्नी का पेड़

लंका की दीवाल देखकर भोर बाग़ की तरफ आने वाले पर्यटकों को वन में कदम्बमहुआ और खैर के वृक्षों के बीच एक विशाल पेड़ स्वतः ही दूर से दिखलाई देता है ।इस पेड़ की ऊँचाई क़रीब ९० से १०० फ़ीट की होगी और वृक्ष की गोलाई लगभग १८० से.मी. की है । यह पेड़ सारे पेड़ों का राजा मालूम होता हैक्यों नहीं होगा राजाकहते है कि महाराजा वीरसिह ज़ूदेव ने द्वारा रोपित पेड़ क़रीब ४०० वर्ष पुराना है । इसकी जड़े डालियों से नीचे की ओर गिरती हुई दिखाई देती है । भूमि के ऊपर भी पेड़ की जड़े काफ़ी दूर से दिखलाई देती है अतः वृक्ष दर्शनीय है ।

पंचमडिया

तुंगारण्य से पंच मंडियाँ करीब ३ कि.मी जंगल के अन्दर जामुनी नदी के बीचों-बीच पत्थरों का एक टीला जैसा बना हैउसमें पाँच मंडियाँ बनी हैउन सभी मंडियाँ में भगवान की मूर्तियाँ स्थापित थीकिन्तु बाद चार मंडियाँ की मूर्तियाँ को ओरछा के विभिन्न मंदिरों में स्थापित करवा दिया गयाअब सिर्फ एक मंडिया में आज भी हनुमान जी की मूर्ति विराजमान है जिनके दर्शन हेतु दर्शनार्थी दूर-दूर से आते हैमडिया तक जाने के लिए जामुनी नदी के पानी से होकर जाना पड़ता है । चट्टानों पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ काफ़ी आकर्षित लगते है । तट एकदम साफ़-सुतरा हैवहाँ की चट्टानों का रंग सफ़ेद व भूरे रंग का है । चट्टानों पर कहीं-कहीं पर काई लगी हैइससे प्रतीत होता है कि बारिश में यहाँ तक पानी आ जाता होगा । यहाँ के लोग कहते हैकि जामुनी नदी में कितनी भी बाढ़ आ जायकिन्तु हनुमान जी की मडिया नहीं डूबती है । परन्तु बाढ़ के समय जामुनी नदी का पाट बहुत गहरा और करीब ७००-८०० फ़ीट चौड़ा हो जाता हैइसलिए उस समय कोई भी पर्यटक व भक्त हनुमान जी की मडिया का दर्शन करने नहीं पहुँच सकता हैमन्दिर के चारों और तुलसी के पेड़ लगे हुए है बीचो-बीच अर्जुनवटसागोनपीपलआँवला आदि अन्य और कई जाति के बड़े-बड़े ऊँचे वृक्ष दूर से ही दिखलाई देते है । 

मंगलवार व शनिवार को भक्त मन्दिर में हनुमान जी कोदीपक जलानेसिन्दूर लगाने व प्रसाद लगाने जाते है । यहाँ पर जामुनी नदी का पानी अत्यन्त साफ़ हैपानी पीने योग्य है । पंचमडिया के पास जामुनी नदी का पानी ऊँची-ऊँची चट्टानों व विशाल वृक्षों के नदी के बीचों-बीच में होने के कारण नदी सात धाराओं में बंटी है । यहाँ पर समूची नदी की गहराई का अन्दाज़ आसानी से नहीं लगाया जा सकता है। अतः यहाँ नदी में तैरना ख़तरनाक हो सकता हैनदी के तट पर वन विभाग वालों की एक निरीक्षक चौकी बनी है उसमें वन विभाग के दो सिपाही २४ घंटे की ड्यूटी पर रहते है और बीचों-बीच में नेशनल पार्क में घूम-घूम कर निरीक्षण करते है कि कोई शिकारी पशु व पक्षियों का शिकार तो नहीं कर रहा है । अगर कोई शिकार करते हुए पकड़ा जाता है तो शिकारी को क़ानूनी तौर से बंधक बनाया जाता है । संरक्षित पेड़ों को भी कोई व्यापारी या ग्रामीण व्यक्ति काटता हैतो उन्हें भी सजा दी जाती हैसाथ ही उन पर जुर्माना लगाया जाता है और मुक़दमे चलाये जाते है । निरीक्षक चौकी की पहाड़ी के नीचे सेनदी के किनारे-किनारे जंगल में अन्दर की ओर क़रीब आधा कि.मी जायेंगे तो हम देखेंगे एक विशाल पेड़ की जड़ो का झुंड भूमि की ऊपरी सतह पर दूर से ही दिखलाई देती है । पास जाकर देखने पर भी यह स्पष्ट नहीं होता है कि कौन सी जड़ किसके पेड़ की है । कई पेड़ों की जडें तो पेड़ की डाली से लटक कर भूमि की जड़ों से मिलन करती दिखलाई देते है । प्रकृति का अद्भुत नज़ारा है यह । इससे क़रीब २०-२५ फ़ीट आगे चलने पर नदी के दूसरी ओर दो बड़े कमरे दिखलाई देते हैवह मछली शिकारगाह है ।

मछली शिकारगाह

यह स्थल नदी के बीच में क़रीब ६०-७० फ़ीट का एक टापू सा हैउस पर महाराजाओं द्वारा आखेट हेतु निर्मित कराये गये दो विशाल मछली के आकार के भवन है इसलिए इसे मछली शिकार गाह कहते है । यहाँ नदी दो भागों में बंटी है। दोनों कमरों के आगे का हिस्सा मछली के मुँह के सादृश्य नुकीला बना हुआ है जो पूर्णतः नदी के ऊपर है । कमरे के सामने वाले हिस्से में दोनों ओर दो छेद शिकार करने के लिए बनाये गये थे जो दूर से मछली की आँख के सादृश्य दिखलाई देती है । दोनों कमरों के चारों ओर दो से चार फ़ीट की दूरी पर कई छेद दिखलाई देते हैं । दोनों कमरों के बीच में एक दरवाज़ा है जिससे राजा एक कमरे से दूसरे कमरे में आसानी से आ जा सके । दोनों कमरों में जाने के लिए एक प्रमुख दरवाज़ा भी है । उसे बन्द कर लेने पर कोई बाहरी पशु व पक्षी अन्दर प्रवेश नहीं कर सकते थे । इसलिए महाराजा व उनके विश्वसनीय कर्मचारी एक कमरे से दूसरे कमरे में जाकर देखते थे जहाँ भी कोई जानवर पानी पीने आता थातो उसी के पास वाले छेद में बन्दूक़ रखकर आसानी से शिकार कर लेते थे । मछली शिकारगाह देखने के लिए हमें जामुनी नदी के एक किनारे से नदी के बीच में बने टापू पर जाना पड़ता हैनदी पथरीली है इसलिए पत्थरों पर पैर रख-रखकर नदी को पार करके टापू पर जाया जा सकता है । परन्तु बारिश के समय में नदी में पानी ज़्यादा होता है । तब नदी को पार करना मुश्किल होता है । कभी-कभी तो टापू पानी में डूब जाता है । जाड़े और गरमी के मौसम में जो नदी दो हिस्सों में दिखलाई देती है वही नदी के एक होने पर नदी का पाट काफी चौड़ा व विशाल रूप धारण कर लेता है । शिकारगाह के आस पास गिद्धों के भी आवास देखे गये हैयहाँ पर कई प्रकार की मछलियाँ दिखलाई देती है शिकारगाह के पास पानी गहरा होने के कारण वहाँ बड़ी-बड़ी मछलियाँ पाई जाती है । इसलिए यहाँ मछलियों का शिकार आसानी से किया जाता था ।

व्यु प्वाइंट

यह स्थल पंचमडिया से करीब पाँच कि.मी. की दूरी पर और मछली शिकारगाह से आधा कि.मी की दूरी पर स्थित है। नेशनल पार्क के अन्दर की मुख्य सड़क से बायीं ओर जंगल की तरफ़ क़रीब तीस फ़ीट ऊँची व आधा मील फैली पहाड़ी दिखलाई देती है । पहाड़ी के उच्च शिखर (व्यु प्वाइंट) पर पहुँचकर नेशनल पार्क की प्राकृतिक सौन्दर्यता के अद्भुत नज़ारे देखकर मन आनंदित हो जाता है । नेशनल पार्क में ऊँचेविशाल व प्राचीन वृक्षों का घना जंगल दिखलाई देता है । दूसरी ओर कल-कल ध्वनि करती हुई जामुनी नदीयहाँ नदी के तटों पर कहीं पानी पीते और कहीं चौकड़ी भरते हिरणनील गायों के झुंड अधिकतर दिखलाई दे जाते हैं । कभी-कभी शेरचीतेबड़े नाग और हाथी जैसे अन्य कई जानवर विचरण करते दिख जाते हैं । यहाँ पर गिद्धों के घोंसले व कई जगहों पर साँप के बिल दिखलाई देते हैं । पहाड़ी पर जहाँ खुले आसमान में दूर देशों से आये हुए विभिन्न तरह के पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती हैवही रंग-बिरंगी तितलियाँ पर्यटकों के मन को मोह लेती हैं | यहाँ पर अर्जुनकटजामुनसागौनझालकरधईपलाशकदंबबेलमहुआख़ैर आदि के अत्यंत प्राचीन एवं विशाल वृक्ष पाये जाते हैं ।

नीमट घाट

बेतवा नदी पर बहुसंख्यक घाट हैं जिनमें नीमट घाट एक महत्वपूर्ण घाट है। यहाँ जैविक विविधता अधिकांशतः दिखलाई देती है । घाट पर काई व लताएँ कहीं-कहीं दिखलाई देती हैं । और घाट के किनारे अनेक प्रकार की घास व झाड़ियां मौजूद हैं । घाट के पास पानी अत्यन्त स्वच्छ हैकिनारे पर बारीक रेत के साथ शंख व छोटी-छोटी मछलियों के तैरते बच्चे बड़े अच्छे लगते हैं । अतः यह घाट अत्यन्त रमणीय एवं दर्शनीय है ।

पिकनिक चौपाटी

यह स्थल तुंगारण्य से पाँच कि.मी. की दूरी और व्यु प्वाइंट से आधा कि.मी. की दूरी पर स्थित है । चौपाटी के पास नदी का पाट बहुत चौड़ा है और समुद्र की खाड़ी के सादृश्य दिखलाई देता है । इसलिए यहाँ के गाँव के लोगों ने मुम्बई की चौपाटी को देखकर इस जगह का नाम चौपाटी रख दियापरन्तु मुम्बई की चौपाटी में चाटभेलपुरीनारियलभुट्टे आदि सभी तरह के खाने पीने की व सैलानियों की भीड़ सदैव दिखलाई देती है । किन्तु यहाँ की चौपाटी में चीड़अर्जुनसागौनकदंबख़ैरबेल के ऊँचे-ऊँचे विशाल वृक्षों की क़तारें दिखलाई देती हैं । पेड़ों पर गुंजायमान करते हुए विभिन्न प्रकार के पक्षीआकाश में उड़ते हुए पक्षीयहाँ दौड़ते हुए वन्य जीव पर्यटकों का मोह लेता हैनदी के किनारे पर विभिन्न प्रकार की मछलियाँ एवं कछुओं की कलाएँ देख कला प्रेमियों की कल्पना के लिए यह स्थल एवं वातावरण अत्यन्त उपयोगी है । यहाँ बहुत बड़ा रेतीला मैदान बना हुआ है । बीच-बीच में छोटी-बड़ी घासें लगा मैदान साफ़ है ।

जन्तुरटावर

यह स्थान नीमट घाट से तीन कि.मी. और तुंगारण्य से सात कि.मी. दूरी पर स्थित है । यह टावर करीब ३० फ़ीट ऊंची पहाड़ी पर बनाया है । पहाड़ी पर एक कमरा है और उसके आगे बरामदा बना है । बरामदे के अन्दर से ही ऊपर छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है । छत पर बारिश के पानी व गरमी की धूप से बचने के लिए चारों तरफ़ से खुला हैपर ऊपर से लकड़ी का छपरा पड़ा है इसलिए पर्यटकों को बारिश के समय में भी पूरे नेशनल पार्क की सौन्दर्यता का अवलोकन करने में आसानी होती है और वे भ्रमण करते हुए वन्य प्राणियों को देखकर आनंदित होते है । यहाँ से नेशनल पार्क के दूर-दूर तक के पेड़ पौधेउन पर चहचहाते हुए पक्षी और रंग-बिरंगे फूलों पर मंडराती हुई कई प्रकार की तितलियाँ व मंडराते हुए भँवरे की गुन-गुना हट से पूरा वातावरण गुन्जायमान होता रहता है और एक ओर जामुनी नदी कल-कल करती रहती है।



बारिश में नदी का पानी जन्तुरटावर की पहाड़ी तक आ जाता है उस समय नदी के पाट की चौड़ाई देखने योग्य होती है । बारिश में नदी खाड़ी जैसा रूप ले लेती है | अरे वाहसामने से नील गाय और हिरन चले आ रहे है । अरे देखो दूसरी ओर लगता है मद मस्त हाथी नदी से पानी पीकर चले आ रहे हैतभी आपस में एक-दूसरे पर हाथी पानी डाल रहे है । अकसर ऐसे दृश्य जन्तुरटावर से स्पष्ट दिखाई दे जाते है । जन्तुरटावर ऊँचाई पर होने से  यहाँ बाघ और तेंदुआ भी टहलते या पानी पीते दिखाई दे जाते हैजिनके शिकार होने का इतिहास साक्ष्य है | प्राकृतिक दृष्टि से तेंदुआ का भी यहाँ श्रेष्ठ प्राकृतिक वासी हैयहाँ से प्रभात में सूर्य उदय और सायं को सूर्य अस्त का दृश्य अवलोकनीय है ।